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डॉ राजेंद्र प्रसाद
भारत के स्वतंत्र होने के बाद 26 जनवरी 1950 को डॉ राजेंद्र प्रसाद भारत के प्रथम राष्ट्रपति पद का शपथ लिए।
हम आपको बता दें कि संविधान सभा की प्रथम बैठक 9 दिसंबर 1946 को हुई जिसमें संविधान सभा का अस्थाई अध्यक्ष डॉ सच्चिदानंद सिन्हा को बनाया गयाा।
इसके बाद अगली बैठक 2 दिन बाद 11 दिसंबर 1946 को हुई जिसमें संविधान सभा का स्थाई अध्यक्ष डॉ राजेंद्र प्रसाद को बनाया गया।
यह हमारे देश के लिए गर्व की बात है कि भारतीय गणतंत्र के लिए प्रथम राष्ट्रपति के रूप में हमने उस व्यक्ति को चुना है जो व्यवहार, विचार, वेशभूषाा, भारतीय संस्कृति इनमें प्रज्ञावान थे।
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डॉ राजेंद्र प्रसाद के जीवन से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारियां
जन्म– राजेंद्रर प्रसाद का जन्म बिहार के जीरादेई नामक गांव में 3 दिसंबर 1884 को हुुआ था। लोग प्यार से इन्हें राजेंद्रर बाबू बुलाते थे।
पिता–इनके पिता का नाम मुंशी महादेव सहाय थे।
जिनको अंग्रेजी और फ़ारसी का ज्ञान था।
माता–इनकी माता का नाम कमलेश्वरी देवी था जो एक धर्मपरायण महिला थी।
डॉ राजेंद्र प्रसाद के एक बड़े भाई और तीन बहने थी इनके बड़े भाई महेंद्र प्रसाद जी ना केवल बड़े भाई का फर्ज निभाया बल्कि पूरे परिवार सहित राजेंद्र प्रसाद के जीवन को आगे बढ़ाने में बहुत बड़ी भूमिका निभाई।
शिक्षा–बचपन में इनकी शिक्षा घर पर ही हुई एक मौलवी इनको घर पर रात में पढ़ाने आते थे। इसकेेेेेेेेेे बाद यह बिहार के छपरा और पटना चले गए वहां पर इन्होंने कानून की डिग्री प्राप्त की। और इसके बाद कोलकाता के कॉलेज में दाखिला लेने के साथ-साथ भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हुए।
यह उन भारतीयों में से एक थे जिन्होंने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान भारतीय कांग्रेश अध्यक्ष के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। और यह महात्मा गांधी के सहयोगी भी थे।
डॉ राजेंद्र प्रसाद चाहे धर्म, वेदांत, साहित्य ,इतिहास, राजनीतिक ,भाषा आदि पर अपने विचार व्यक्त करते थे। डॉ राजेंद्र प्रसाद उच्च विचार ,सादा जीवन और अमृतवाणी के लिए प्रसिद्ध थे।
इन्होंने बहुत सारे आंदोलनों में भाग भी लिए और किसी केस के मामले में इंग्लैंड भी गए थे।
आजादी के बाद संविधान सभा में यह घोषणा की गई कि भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद और उपराष्ट्रपति डॉ डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन को बनाया जाएगा और 26 जनवरी 1950 को डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद भारतके प्रथम राष्ट्रपति पद का शपथ लेते हैं।
लोग इनके कार्य कुशलता से इतने प्रभावित हुए कि
वर्ष 1957 में राष्ट्रपति चुनाव में इन्हें विजय प्राप्त हुई
और यह दोबारा राष्ट्रपति चुने गए । इस तरह भारत के एकमात्र राष्ट्रपति थे जो लगातार दो बार राष्ट्रपति रहे।
सन 1962 में अपनी राजनीतिक और सामाजिक योगदान के लिए इनको भारत का सर्वश्रेष्ठ सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
इसके बाद इन्होंने राजनीति सेे संयास ले लिया और अपना बाकी का जीवन बिहार के पटना में एक आश्रम में व्यतीत किए बताया जाता है कि 28 फरवरी 1963 को किसी बीमारी के कारण इन्होंने अपनी अंतिम सांस ली।
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