1935 ई के शासन अधिनियम में तीन से 21 अनुच्छेद और 10 अनुसूचियां थी इस अधिनियम की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित है।
1. अखिल प्रांतीय संघ-
अखिल भारतीय संघ 11 ब्रिटिश प्रति 6 के कमिश्नर के क्षेत्र और अंडर्सी रियासतों से मिलकर बनता था जो स्वेच्छा से संघ में शामिल हो। प्रति के लिए संघ में सम्मिलित होना अनिवार्य था किंतु देसी रियासतों के लिए यह ऐच्छिक था। देशी रियासतें संघ में सम्मिलित नहीं हुई और प्रस्तावित संघ की स्थापना संबंधी घोषणा पत्र जारी करने का अवसर ही नहीं आया।
2 . प्रांतीय स्वायत्तता-
इस अधिनियम के द्वारा प्रति में द्वैध शासन व्यवस्था का अंत कर उन्हें एक स्वतंत्र और स्वशासित संवैधानिक आधार प्रदान किया गया।
3. केंद्र में द्वैध शासन की स्थापना-
इस अधिनियम में विधाई शक्तियों को केंद्र और प्रांतीय विधान मंडलों के बीच विभाजित किया गया इसके तहत पेरिस संघ सूची क्रांति सूची एवं समवर्ती सूची का निर्माण किया गया ।
4. संघीय न्यायालय की व्यवस्था-
इसका अधिकार क्षेत्र प्रति तथा रियासतों तक विस्तृत था इस न्यायालय में एक मुख्य न्यायाधीश तथा दो अन्य न्यायाधीश की व्यवस्था की गई न्यायालय से संबंधित अंतिम शक्ति प्रिवी काउंसिल को प्राप्त था ।
5. भारत परिषद का अंत-
भारत शासन अधिनियम 1935 के द्वारा भारत परिषद का अंत कर दिया गया।
6. ब्रिटिश संसद की सर्वोच्चता-
इस अधिनियम में किसी भी प्रकार के परावर्तन का अधिकार ब्रिटिश संसद के पास था प्रांतीय विधान मंडल और संघीय व्यवस्थापिका,इनमें किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं कर सकते थे।
7. भारत शासन अधिनियम 1935 में प्रस्तावना का अभाव था।
8. सांप्रदायिक निर्वाचन पद्धति का विस्तार-
संगीत तथा प्रति व्यवस्थापिकाओं में विभिन्न संप्रदायों को प्रतिनिधित्व देने के लिए सांप्रदायिक निर्वाचन पद्धति को जारी रखा गया और इसका विस्तार दलित जातियों महिलाओ और मजदूर वर्ग तक किया गया।
9. इस अधिनियम के द्वारा वर्मा को भारत से अलग कर दिया गया।
10. इसके अंतर्गत देश की मुद्रा और साख पर नियंत्रण के लिए भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना की गई ।
11. इस अधिनियम के तहत मताधिकार का विस्तार किया गया, लगभग 10% जनसंख्या को मत देने का अधिकार मिल गया ।
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