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जैन धर्म के संस्थापक या प्रथम तीर्थंकर कौन थे?

जैन धर्म-
              जैन धर्म प्राचीन धर्मों में से एक है जो सभी प्राणियों को अनुशासित और अहिंसा के मार्ग पर चलना सिखाता है जैन' शब्द जिन या जैन से बना है जिसका अर्थ है 'विजेता'।

जैन धर्म की उत्पत्ति-
                             जैन धर्म की उत्पत्ति छठी शताब्दी ईसा पूर्व में हुई थी इस धर्म में 24 महान शिक्षक या तीर्थंकर थे जिसमें पहले तीर्थंकर ऋषभदेव और अंतिम तीर्थंकर महावीर थे इन 24 तीर्थंकरो ने ज्ञान को प्राप्त कर लोगों में अपने धर्म का प्रचार करते थे।
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जैन धर्म के संस्थापक-
                                 जैन धर्म के संस्थापक या प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव थे तीर्थंकर का अर्थ होता है जो तीर्थ की रचना करें। जो संसार सागर से मोक्ष तक के तीर्थ की रचना करें, वह तीर्थंकर कहलाते हैं। ऋषभदेव जी को आदिनाथ,ऋषभनाथ भी कहा जाता है।
पिता -       नाभिराज

माता-        महारानी मरूदेवी

पुत्र-         भरत चक्रवर्ती, बाहुबली और                              वृषभसेन,अनन्तविजय,

पुत्री-           ब्राह्मी और सुंदरी

जन्म स्थान-        अयोध्या

मोक्ष स्थान-        कैलाश पर्वत

जैन धर्म के सिद्धांत-
                              जैन धर्म के पांच सिद्धांत हैं। 
1. अहिंसा 
2.सत्य 
3.अस्तेय 
4.अपरिग्रह 
5.ब्रह्मचर्य

जैन धर्म के संप्रदाय-
                             जैन धर्म के संप्रदाय को दो संप्रदायों में विभाजित किया गया।
1. दिगंबर 
2.श्वेतांबर

विभाजन मुख्य रूप से मगध में अकाल के कारण हुआ 12 वर्षों के अकाल के दौरान दक्षिण भारत में समूह सख्त प्रथाओं पर कायम रहा, जबकि मगध में समूह ने अधिक ढीला रवैया अपनाया और सफेद कपड़े पहनना शुरू कर दिया।
    अकाल की समाप्ति के बाद जब दक्षिणी समूह मगध में वापस आया तो बदली हुई प्रथाओं ने जैन धर्म को दो संप्रदायों में विभाजित कर दिया।

जैन संगीति या परिषद-

प्रथम जैन संगीति-
                           प्रथम जैन संगीति तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व पाटलिपुत्र में आयोजित हुई इसके अध्यक्ष स्थूलभद्र थे।

द्वितीय जैन संगीति-
                             द्वितीय जैन संगीति 512 ईस्वी में वल्लभी में आयोजित हुई इसके अध्यक्ष देवर्षि क्षमाश्रमण थे। 

* जैन धर्म आत्मा के पुनर्जन्म में विश्वास करता है। 
* जैन धर्म में ईश्वर के अस्तित्व को मानता है।
* जैन धर्म वर्ण व्यवस्था की निंदा नहीं करता है। 
* जैन धर्म वास्तुकला और साहित्य में बहुत योगदान दिया।

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