इसे भी पढ़े।
केशवानंद भारती केस-
जब केरल सरकार ने भूमि सुधार के दो कानून लागू किये इस कानून के मुताबिक सरकार मतों की संपत्ति को जप्त कर लेती। केरल सरकार के इस फैसले के खिलाफ एडनीर मठ के सर्वेसर्वा केशवानंद भारती खिलाफत कर दिये।
केरल हाईकोर्ट के समक्ष इस मठ के मुखिया होने के नाते 1970 में दायर एक याचिका में केशवानंद भारती ने अनुच्छेद 26 का हवाला देते हुए मांग की थी कि उन्हें अपनी धार्मिक संपदा का प्रबंधन करने का मूल अधिकार दिलाया जाए।
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने 1967 में गोकुलनाथ केस के मामले में सुनवाई करते हुए फैसला दिया था कि सरकार लोगों के मूल अधिकारों में कोई बदलाव नहीं कर सकती है।
केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य के मामले में 68 दिन तक सुनवाई हुई, यह तर्क वितर्क 31 अक्टूबर 1972 को शुरू होकर 23 मार्च 1973 को खत्म हुआ। 24 अप्रैल 1973 को, चीफ जस्टिस सीकरी और उच्चतम न्यायालय के 12 अन्य न्यायाधीशों ने न्यायिक इतिहास का यह सबसे महत्वपूर्ण निर्णय दिया।
मामले की गंभीरता को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट के इतिहास में पहली और आखरी बार तेरे जजों की बेंच बैठी। इस बेंच का नेतृत्व तत्कालीक सी जे आई एमएम सीकरी ने किया इस केस में 7-6 मार्जिन के साथ फैसला सुनाया गया। इस प्रकार सुप्रीम कोर्ट का फैसला केशवानंद भारती के पक्ष में आया।
फैसला 24 अप्रैल, 1973 को मुख्य न्यायाधीश एस एम सीकरी के सेवानिवृत्त होने के दिन सुनाया गया था। भारत के सर्वोच्च न्यायालय के 13 न्यायाधीशों द्वारा तय किया जाने वाला एकमात्र मामला है।
फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा-
केशवानंद भारती केस का फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने तीन प्रमुख टिप्पणियां दी।
1. सरकार संविधान से ऊपर नहीं है।
2. सरकार मूल ढांचा के साथ खिलवाड़ नहीं कर सकती।
3. यदि सरकार किसी कानून में बदलाव करती है तो अदालत को उसे सरकार के फैसले की न्यायिक समीक्षा करने का अधिकार है।
केशवानंद भारती बनाम स्टेट ऑफ़ केरल मामले के ऐतिहासिक फ़ैसले से कई विदेशी संवैधानिक अदालतों ने भी सराहना की।
दोस्तों आपको यह जानकारी कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताएं।
0 टिप्पणियाँ