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जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर कौन थे?Who were the 24th tirthankar of jainism?

जैन धर्म-
              जैन धर्म प्राचीन धर्मों में से एक है जो सभी प्राणियों को अनुशासित और अहिंसा के मार्ग पर चलना सिखाता है जैन' शब्द जिन या जैन से बना है जिसका अर्थ है 'विजेता'।

जैन धर्म की उत्पत्ति-
                             जैन धर्म की उत्पत्ति छठी शताब्दी ईसा पूर्व में हुई थी इस धर्म में 24 महान शिक्षक या तीर्थंकर थे जिसमें पहले तीर्थंकर ऋषभदेव और अंतिम तीर्थंकर महावीर थे इन 24 तीर्थंकरो ने ज्ञान को प्राप्त कर लोगों में अपने धर्म का प्रचार करते थे।

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जैन धर्म के संस्थापक-
                                 जैन धर्म के संस्थापक या प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव थे तीर्थंकर का अर्थ होता है जो तीर्थ की रचना करें। जो संसार सागर से मोक्ष तक के तीर्थ की रचना करें, वह तीर्थंकर कहलाते हैं। ऋषभदेव जी को आदिनाथ,ऋषभनाथ भी कहा जाता है।

जैन धर्म के 24 वें तीर्थंकर-
                                       चौबीसवें और अंतिम तीर्थंकर महावीर स्वामी (५९९-५२७ ईसा पूर्व) थे। 
जिन्होंने जैन धर्म के प्रचार- प्रसार में अपना पूरा जीवन त्याग कर दिए। 
        भगवान महावीर का जन्म लगभग 600 वर्ष पूर्व चैत्र शुक्ल त्रयोदशी के दिन क्षत्रियकुण्ड नगर मे हुआ. भगवान महावीर की माता का नाम महारानी त्रिशला और पिता महाराज सिद्धार्थ थे. भगवान महावीर कई नामो से जाने गए उनके कुछ प्रमुख नाम वर्धमान, महावीर, सन्मति, श्रमण आदि थे. महावीर स्वामी के भाई नंदिवर्धन और बहन सुदर्शना थी

                इनके माता—पिता ने इनका विवाह राजकुमारी यशोदा के साथ कर दिया. बाद में उन्हें एक पुत्री प्रियदर्शना की प्राप्ति हुई, जिसका विवाह जमली से हुआ.

          उन्हें 12 वर्ष के कठोर तपस्या के बाद जम्बक में ऋजुपालिका नदी के तट पर एक साल्व वृक्ष के नीचे सच्चा ज्ञान प्राप्त हुआ.

          भगवान महावीन जी की मृत्यु 527 ईसा पूर्व पावापुरी में 72 वर्ष की आयु में हो गयी 


जैन धर्म के सिद्धांत-
                              जैन धर्म के पांच सिद्धांत हैं। 
1. अहिंसा 
2.सत्य 
3.अस्तेय 
4.अपरिग्रह 
5.ब्रह्मचर्य

जैन धर्म के संप्रदाय-
                             जैन धर्म के संप्रदाय को दो संप्रदायों में विभाजित किया गया।
1. दिगंबर 
2.श्वेतांबर

जैन संगीति या परिषद-

प्रथम जैन संगीति-
                           प्रथम जैन संगीति तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व पाटलिपुत्र में आयोजित हुई इसके अध्यक्ष स्थूलभद्र थे।

द्वितीय जैन संगीति-
                             द्वितीय जैन संगीति 512 ईस्वी में वल्लभी में आयोजित हुई इसके अध्यक्ष देवर्षि क्षमाश्रमण थे। 

* जैन धर्म आत्मा के पुनर्जन्म में विश्वास करता है। 
* जैन धर्म में ईश्वर के अस्तित्व को मानता है।
* जैन धर्म वर्ण व्यवस्था की निंदा नहीं करता है। 
* जैन धर्म वास्तुकला और साहित्य में बहुत योगदान दिया।

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